मेरी पाठिका की कामवासना पूर्ति- 1 • Kamukta Sex Stories

मेरी पाठिका की कामवासना पूर्ति- 1

लंड सकिंग सेक्स कहानी में पढ़ें कि मेरी सेक्स स्टोरी पढ़कर एक लड़की ने मुझसे मिलना चाहा. हम होटल के कमरे में मिले. उसका कसा बदन देख मैंने उसे दबोच लिया।

दोस्तो, मेरी कहानी में आपका स्वागत है।
मैंने अन्तर्वासना पर इससे पहले कहानियां लिखी हैं।
आज मैं अपनी एक और रचना के साथ हाजिर हूं।

जैसा कि आप मेरी कहानियों में भी पढ़ते हैं कि मैं सम्भोग का पूरा आनंद लेता हूं। कई चूतों को गहराई तक भोग चुका हूं.
लेकिन कामवासना कोई एक बार में शान्त होने वाली चीज तो है नहीं!
चूत को कितनी बार भी चोदो, फिर से चोदने की ललक उठती है।

जैसे ही मुझे कोई बड़े बड़े नितम्बों वाली महिला या कन्या दिखती है, मेरे मन में हलचल सी मच जाती है।
पता नहीं क्यों मुझे महिलाओं के हल्के से बाहर निकले हुए नितम्ब बचपन से आकर्षित करते रहे हैं।
शायद उस समय मुझे चुदाई और गांड का महत्व भी नहीं पता था।

मेरी एक चाची थी।
सच में क्या मस्त नितम्ब थे उनके!
उस समय तो साइज वग़ैरह का ज्ञान नहीं था लेकिन कम से कम 38 इंच तो साइज रहा होगा उनका!
काश एक बार भी उनकी निर्वस्त्र गांड के दर्शन हो पाते तो ये जीवन धन्य हो जाता।

जब वो चलती थी तो साड़ी का कसाव और नितम्बों का कम्पन देखते ही बनता था।
खैर छोड़िये जो मिला ही नहीं उसका क्या रोना!

एक दिन अचानक मेरी ई-मेल पर एक मैसेज आया कि मुझे अन्तर्वासना पर लिखी आपकी स्टोरी
चचेरे भाई की दिलकश बीवीhttps://www.antarvasna3.com/bhabhi-ki-chudai/jawan-bhabhi-ki-kahani/
बहुत पसंद आयी।

मैंने उसे हैंगआउट पर मैसेज किया।

फिर एक दिन एक महिला मुझे अपनी चूत के फोटो भेज रही थी तो मैंने फोटो सेव करने के लिए हैंगआउट्स पर उसे फॉरवर्ड कर दिए।
मैंने उसे अपने लण्ड की एक फ़ोटो भेजी जिस पर उसने आपत्ति जतायी और मुझे कोई और मैसेज नहीं भेजने को बोलना।

तब मैंने उससे माफ़ी मांगी।
फिर उसने धीरे-धीरे बातचीत करनी शुरू की।
उस महिला प्रशंसक का नाम विदिशा (बदला हुआ) था। वो रांची की रहने वाली थी।
यह लंड सकिंग सेक्स कहानी उसी की है.

कुछ दिनों की बातचीत के बाद मैं और विदिशा खुल कर बात करने लगे।

उसके फोटो देखकर मैंने उसके फिगर का अंदाजा लगाया, वो एक दुबली पतली 26 वर्षीय अविवाहित युवती थी। उसका फिगर साइज लगभग 30-28-30 का लग रहा था।
उसके इतने स्लिम फिगर ने मेरे पौरूष में आग लगा दी।

मन में उसकी छोटी सी और पतली सी चूत और छोटे-छोटे नाशपाती जैसे कठोर उभारों की कामुक कल्पनाएं जागृत होने लगीं।
ना जाने कितनी बार उसकी कामुक कल्पनाओं में मैंने अपने पौरूष को टॉयलेट में बहा दिया।
बातों का सिलसिला सोशल मीडिया पर यूँ ही चलता रहा।

वो मिलने के लिए तैयार थी और मेरा लन्ड मानो उसकी चूत में समा जाने को उतावला हो रहा था।

एक दिन पता चला कि मेरी ससुराल में शादी है और उन लोगों ने 15-20 दिन पहले आने को बोला.
लेकिन छुट्टियों के अभाव के चलते मैंने बीवी को ट्रेन से ससुराल भेज दिया।

अब मैं, मेरा पौरूष और मेरी अनंत कामवासना अकेले थे।

जब भी बीच-बीच में टाइम मिलता तो मैं रेनू (मेरी पिछली कहानी की पात्र) के घर जाकर उसकी चूत की ख़ुदाई करके आ जाता था।

एक दिन मैंने विदिशा को बोला कि मैं घर पर बिल्कुल अकेला हूँ।
ये सुनकर वो चुदने को उतावली सी हो गयी और मिलने को बोलने लगी।

विदिशा मेरा लन्ड देख कर पहले ही दीवानी हो चुकी थी।
मैंने उसको हैदराबाद तक आने को बोल दिया।
मेरा घर हैदराबाद से 80 किमी दूर था।

उसने घर पर ऑफिस का काम बोलकर आने का प्लान बना लिया और मैंने उसे एयरपोर्ट पर मिलने का वादा किया।
मन में एक गुदगुदी हो रही थी। लन्ड महाराज बार-बार फुंफकारने लगते थे।
उनको शांत करने के लिए उनका मर्दन और मंथन दोनों करना पड़ता था।

विदिशा के आने का दिन आ गया और मैंने ऑफिस से 3-4 दिन की छुट्टी ले ली।
सुबह उठ कर सबसे पहले लन्ड महाराज के राज्य क्षेत्र की सफाई की और अच्छे से नहा-धोकर तैयार हो गया।

विदिशा की फ्लाइट शाम को 7 बजे आनी थी लेकिन मैं 6 बजे ही एयरपोर्ट पर पहुंच गया।

मन में एक तूफ़ान उठ रहा था कि उसका सामना कैसे करूँगा जो मुझसे केवल मिलने और चुदने के लिए आ रही है।
मेरा एक घंटा बड़ी मुश्किल से गुज़रा … बड़ा मुश्किल था इन्तज़ार!

फिर एयरपोर्ट एग्जिट से निकल कर एक लम्बी पतली सुंदर सी लड़की ब्लैक जींस और पीली टी-शर्ट में तेज क़दमों से चलती हुई मेरी ओर आ रही थी।
सच में उसका फ़िगर जानलेवा था, उभारों से लेकर नितम्बों तक हर अंग कसा हुआ था।

पास आते ही उसने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए बोला- हाय मैं विदिशा, शायद आप मेरे ही इंतज़ार में हैं।

उसके मुलायम से हाथ को हाथ में लेकर मैं बोला- हाय मैं क़सम, आपका ही इंतज़ार कर रहा हूँ।
कहते हुए मैंने उसके मुलायम हाथ को कसकर दबा दिया।

“कहाँ चलोगी अभी मेरे घर का रास्ता यहां से 2-3 घण्टे का है, अगर तुम चाहो तो आज रात किसी होटल में रूक सकते हैं।” मैंने पेशकश की।

मैंने होटल में रुकने की सारी प्लानिंग पहले ही कर रखी थी।
“कसम जी, मुझसे अब और यात्रा नहीं होगी, सुबह से कर रही हूँ, बहुत थक गई हूँ। प्लीज आप किसी होटल में रुक लो। मुझे नहाना भी है।” उसने कहा।

“ठीक है यहाँ पास में एक अच्छा होटल है लेकिन एक शर्त पर!”
“बोलिए?” विदिशा ने मुस्कराते हुए पूछा लेकिन वो समझ गयी थी वो आज रात भर ठुकने वाली है।

“आप शावर मेरे साथ लेंगीं.” कहते हुए मैंने उसका बैग कार के अंदर रख दिया और उसे आगे बैठने को इशारा किया।
“तो क्या आप अभी से शुरू करेंगे? अरे थोड़ा सा सब्र करो … सब कुछ आपका ही है।”
“नहीं मुझे तो आज से शुरू करना है।” कहते हुए मैंने गाड़ी स्टार्ट की और एक हाथ उसकी जीन्स के ऊपर रखकर दबा दिया।
यूँ लगा कि जैसे उसकी पूरी चूत हाथ में आ गयी हो।

विदिशा सीत्कार उठी- अरे बहुत थक गई है बेचारी अभी मत सताओ, आज रात जी भरकर सता लेना!

मैंने कार को होटल के रास्ते पर डाल दिया और लगभग 20 मिनट के बाद हम होटल में पहुँच गए।

रूम से लेकर डिनर तक सब कुछ मैंने पहले से ही एडवांस में बुक करवाया हुआ था।

रूम में पहुँच कर मैंने विदिशा को बांहों में भर लिया और अपने होंठों को उसके पतले होंठों पर रख दिया।
हम दोनों ही प्यासे थे तो जी भरकर रसपान करने लगे।

मैंने कपड़ों के ऊपर से उसके छोटे-छोटे बेहद कैसे हुए उभारों को दबाना शुरू किया तब मुझे एहसास हुआ कि उसके उभार इतने भी छोटे नहीं हैं जितने कपड़ों के ऊपर से दिखते हैं।

एक हाथ जीन्स के अन्दर डालकर मैं उसके गोल-गोल कसे हुए नग्न नितम्बों को सहलाने लगा और एक उंगली उसकी गांड के छेद में हल्की सी घुसा दी.
जिससे विदिशा हल्के से चिहुँक उठी।

विदिशा लगभग मुझमें समा जाना चाहती थी और एक लम्बी किसिंग के बाद हम दोनों अलग हुए।
मैंने कमरे को और बाथरूम को अच्छे से चेक किया कहीं कोई कैमरा तो नहीं!

“मैं नहा लेती हूँ।” कहकर उसने बैग से एक बहुत छोटी और पारदर्शी नाइटी निकाल ली और उसका एक हाथ जीन्स की बेल्ट पर गया और उसने मुझे देखा और शरारत से मुस्करा दी।

“अरे यहीं निकाल लो ना!” मैंने मिन्नत करते हुए बोला।
“अरे सब्र करो … अभी तो पूरी रात बाकी है।” कहकर वो बाथरूम में घुस गयी।

यूँ तो मैंने कई बार रेनू के माँसल जिस्म को जी भरकर निचोड़ा था लेकिन विदिशा के जिस्म में एक अलग ही नशा लगा मुझे!
विदिशा के जिस्म पर माँसलता नाममात्र की थी, हर अंग कसा-कसा सा था।
रेनू के साथ बिताये लम्हों की याद आते ही मेरा पौरूष तिलमिलाने लगा।

बाथरूम के अंदर विदिशा मल-मलकर अपने जिस्म को साफ कर रही थी।
मेरा मन कर रहा था कि बाथरूम में जाकर उसे दबोच लूँ लेकिन जल्दबाजी ठीक नहीं थी।
फिर कुछ देर बाद बाथरूम का दरवाजा खुला और मेरी आंखें चौंधिया सी गयीं।

सामने साक्षात रति देवी विदिशा के रूप में एक पारदर्शी बेबीडॉल नाइटी में खड़ी थी।

चेहरे पर बिखरे बाल, सुंदर सा लम्बा चेहरा, बड़ी-बड़ी काली आँखें, पतले से रसभरे होंठ, लम्बी पतली नाक, गोरे चिकने गाल, पतली सुराहीदार गर्दन, हल्के चौड़े कंधे, नाशपाती जैसे तने हुए उभार, एकदम चिकना समतल पेट, गहरी नाभि, पतली कमर का बेहतरीन कटाव, लम्बा कद, चिकनी लम्बी पतली टाँगें, हल्की मोटी सी रोमविहीन जाँघें, जाँघों के बीच हल्की सी काले बालों की झलक, सर से पैर तक क़यामत लग रही थी।

उसके 32 इंच के तने हुए छोटे-छोटे दो कबूतर जो पारदर्शी कपड़े में फंसे पड़े थे, आजाद होकर उड़ने को बेताब थे।
विदिशा का निर्दोष सौंदर्य किसी रमणीय पर्वतीय स्थल जैसा था जहाँ आज पूरी रात मैं भ्रमण करने वाला था।

वह पलट कर पानी लेने के लिए मुड़ी।

उफ्फ … क्या नितम्ब थे उसके, लगभग एक-दूसरे से चिपके हुए गोल-गोल … थोड़ा सा उभरे हुए!
दोनों नितम्बों को एक बारीक़ सी रेखा अलग कर रही थी।
मेरा लन्ड उसकी गांड में जाने के लिए उतावला होने लगा।

मैंने उठकर उसे बांहों में भर लिया और बिस्तर पर गिरा लिया।
विदिशा भी मुझसे लिपट गयी और मुझमें समाने लगी।

फिर मुझे याद आया कि विदिशा ने सुबह से खाना नहीं खाया है।
तो मैंने होटल के रिसेप्शन पर फ़ोन किया और विदिशा की पसंद का खाना ऑर्डर कर दिया।
मैं अब दोबारा से विदिशा के होंठों को चूसने लगा।
मेरे हाथ धीरे-धीरे उसके यौवन के उतार-चढ़ाव पर फिसलने लगे।

तभी डोरबेल बजी और विदिशा ने अपने अर्धनग्न जिस्म को चादर से ढक लिया।
वेटर से खाना लेकर और उसे टिप देकर बर्तन सुबह लेकर जाने को बोल दिया।

मैंने खाना लगाया और मैंने हल्का खाना खाया और विदिशा ने भी हल्का ही खाया।

“कैसा था खाना?” मैंने उससे पूछा।
“अभी खाया ही कहाँ है जो टेस्ट बोलूँ!” कहकर विदिशा हँस दी और मेरी शर्ट उतार दी।

वो मेरे बालों से भरे सीने पर हाथ फिराने लगी और हाथों को नीचे लेकर मेरा हाफ निकर भी निकाल दिया।
मैं बिल्कुल नंगा उसके सामने खड़ा था।

उसने लपक कर मेरे खड़े लन्ड को हाथ में भर लिया और उसकी मोटाई और लम्बाई मापने लगी।
“सच में बहुत मोटा है, मेरी चूत तो आज धन्य हो जाएगी इसे अंदर लेकर, आज आप फाड़ डालिये मेरी चूत का हर कोना, छील के रख दीजिये मेरी चूत को अपने हथौड़े से!”

धीरे-धीरे विदिशा ने अपने कोमल हाथों से मुठ मारनी शुरू कर दी।
बीच-बीच में मेरे लन्ड के टोपे को वो बहुत गौर से देखती और मूत्रद्वार को बड़े प्यार से सहलाती।

फिर उसने मेरा लन्ड मुँह में ले लिया और पूरा गले तक निग़ल गयी और लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।
ऐसा लग रहा था कि मुंह से मेरा लन्ड निचोड़ लेना चाह रही हो।
कभी लन्ड के टोपे पर दाँत गड़ा देती तो कभी मूत्रद्वार में जीभ घुसाती।

वो लन्ड चूसने की कला की महारथी थी।
लौड़ा चूसते चूसते उसने मुझे स्वर्ग में पहुँचा दिया।

मेरा लन्ड भी लोहे जैसा कड़क और विकराल रूप में आ चुका था।
जैसे ही मुझे लगा कि अब शीघ्र ही मेरा पौरूष बहने वाला है मैंने एकदम पूछा- मेरा होने वाला है, क्या करोगी?

“मुझे आपका लिंगामृत पीना है, प्रसाद देकर मुझे धन्य करें!” बोलकर उसने फिर से लंड पर मुंह को गड़ा दिया और अपने हाथों और मुँह से मेरा लन्ड मथना शुरू कर दिया।
मानो वो मेरे लन्ड का सारा वीर्य निकाल लेना चाहती हो।

उसकी चुसाई ने मेरा बुरा हाल कर दिया।
मेरे हाथ उसके बालों में कंघी करने लगे और उसके चेहरे को दबाने लगे ताकि लन्ड और अंदर तक जाए।
विदिशा मेरे लन्ड पर अपनी जीभ का कामुक प्रयोग कर रही थी।

कभी लन्ड को गले तक उतार लेती तो कभी झटके से बाहर उगल देती।
मैं सच में स्वर्ग में विचरण कर रहा था और वो पूरी तल्लीनता के साथ लन्ड मंथन में खोई हुई थी।
कुछ मिनट के बाद मेरा शरीर अकड़ने लगा और मेरे शरीर से मानो संतुलन खत्म सा हो गया।

मैंने उसके सिर को कसकर लन्ड के ऊपर दबा लिया और तेज तेज धक्के मारने लगा।
“आह! आह! के साथ मेरा गर्म गर्म लावा लन्ड के ज्वालामुखी से निकलकर विदिशा के मुँह में गिरने लगा।

विदिशा सच में सदियों से लंडामृत की प्यासी थी।
लंडामृत का रसपान करके उसकी आँखों में एक संतुष्टि और विजय साफ दिख रही थी।

फिर मैंने उसका सिर कसकर पकड़ कर, सारा माल उसके मुँह में निचोड़ दिया।
विदिशा पूरा वीर्य अंदर निग़ल गयी और लन्ड और मूत्रद्वार को जीभ से चाट चाटकर साफ कर दिया।

मैं लगभग निढ़ाल सा हो गया था और बिस्तर पर गिर पड़ा।
यूँ तो न जाने कितनी बार लन्ड चुसवाया लेकिन आज तक इतनी थकान और संतुष्टि कभी नहीं मिली।

“कैसा लगा जानू? वैसे तुम्हारे वीर्य का टेस्ट बहुत प्यारा है, मन कर रहा है कि एक बार और चूसूं इसे!”
बोलकर विदिशा ने मेरे निढाल पड़े लन्ड को मुँह में भर लिया।

“तुमने तो आज मुझे स्वर्ग में पहुंचा दिया। सच में आज तक किसी ने भी ऐसा मुखमैथुन नहीं किया। थैंक यू सो मच डिअर … अब मैं भी तुम्हें स्वर्ग के दर्शन जरूर करवाऊंगा।”

5 मिनट के विश्राम के बाद मैंने विदिशा के नाममात्र के कपड़ों को निकालना शुरू किया।
भले ही कपड़े नाममात्र के थे लेकिन विदिशा का सारा खजाना इन्हीं के अन्दर छुपा हुआ था।

जैसे ही उसके बूब्स को निःवस्त्र किया तो दो नाशपाती के आकार के गोल-गोल उभार सामने आ गए और उनके ऊपर हल्के कत्थई रंग के छोटे से चूचक देख मेरे मुंह में लार भर आई।

उसके दोनों चूचक बहुत छोटे थे। लगता था ये किसी मर्दाना हाथों में अभी तक नहीं आये थे।
“तुम्हारे बूब्स और चूचक कितने सुंदर और छोटे हैं, बिल्कुल कुंवारी कन्याओं के जैसे।”
सुनकर विदिशा मुस्करा दी- 6 साल से ये पुरूष स्पर्श से वंचित हैं। इन्हें आज निचोड़ दीजिये।

मैंने उसके दोनों बूब्स को अपने हाथों में भर लिया और हल्के-हल्के से दबाने लगा।
सच में उसके बूब्स बहुत टाइट थे।
मेरे हाथों का स्पर्श पाकर वो सिहर उठी और उसका शरीर तनाव में आने लगा।

उसके एक चूचुक को मैंने मुँह में ले लिया और उसके ऊपर जीभ फिराने लगा और दूसरे हाथ से दूसरे बूब्स को कस कर दबाने लगा।

विदिशा बेकाबू होने लगी लेकिन उसको अपने बूब्स का मर्दन बहुत अच्छा लग रहा था।
उसकी घुंडियाँ तनकर खड़ी हो गयीं और मैंने दोनों घुंडियों को दांतों से काटना शुरू कर दिया।

विदिशा अब कामुक और बेचैन होने लगी। उसने मेरे मुरझाए हुए लण्ड को सहलाना शुरू कर दिया।

उसके बूब्स को दबाते हुए मैंने उसके पेट को चूमना शुरू कर दिया और जीभ को उसकी नाभि में घुसा कर नाभि को जीभ से चोदना शुरू कर दिया।
विदिशा के पैर मचलने लगे और वो जाँघों को आपस में रगड़ने लगी।

नाभि के बाद मैंने नीचे प्रस्थान किया जहां उसकी चूत की सुरक्षा एक पतली और पारदर्शी पैंटी के हवाले थी।
मैंने विदिशा की चूत के सुरक्षा कवच को धीरे-धीरे उतारना शुरू कर दिया।

विदिशा अब इंतज़ार के मूड में नहीं थी; उसने पैंटी को अपने पैरों से अलग कर दिया।

मेरे सामने विदिशा का आग्नेय सौंदर्य नग्नावस्था में लेटा हुआ था।
उसके जिस्म की आग ने मेरे पौरुष को फिर से चट्टान बना दिया और विकराल रूप लेकर उसकी चूत मार्ग को ध्वस्त करने के लिए मेरा गर्म हथौड़ा उतावला हो गया।

लंड की नसें एक बार फिर से तन गईं और लंड में झटके लगने लगे।
मैं भी उसकी कमसिन चूत में अपने गर्म हथौडे़ को ठंडा करने के लिए बेताब था।

अगले भाग में आपको और मजा आने वाला है. लंड सकिंग सेक्स कहानी पर अपनी राय देना न भूलें।