क पुरानी पी डी ऍफ़ कहानी का पुनर्प्रकाशन
मैं बबलू एक बार फिर अपनी नई कहानी लेकर हाजिर हूँ. मेरी पिछली कहानियां सभी को बहुत पसंद आईं, बहुत से ईमेल भी आये. इस बार फिर एक धमाकेदार कहानी लेकर आया हूँ. यह मेरे दोस्त की घटना है, जिसे मैं आपको सुना रहा हूँ.
मेरे दोस्त का नाम गौरव है. उसे चुदाई का बहुत शौक है. अलग अलग तरह के आसनों में चुदाई करने में उसे बहुत मजा आता है. कॉलेज की कई लड़कियों से उसके संबंध हैं. यह चुदाई उसने अपने माँ-बाप से ही सीखी है. जब उसके मम्मी पापा रात को चुदाई करते हैं, तो गौरव चुपचाप उनकी चुदाई और नई-नई स्टाइल देखता है. उसकी मम्मी जिनका नाम प्रीति है, बहुत सेक्सी हैं और वे नई-नई स्टाइल में चुदवाना पसंद करती हैं. आज भी उन्होंने अपने बदन को इतना मैंटेन कर रखा है कि कोई भी उन्हें चोदने को तैयार हो जाये. हालाँकि वह अपनी मम्मी को बहुत इज्जत देता है, लेकिन एक घटना ऐसी घटी कि गौरव का दिमाग भी हिल गया.
हुआ यूं कि एक बार गांव से गौरव के दादाजी मीठानंद आये. गौरव के दादाजी आज भी जवान दिखते हैं और रोज कसरत करते हैं. इसी कारण उनका शरीर भरा-पूरा है.
गौरव की मम्मी दादाजी का खूब सम्मान करती हैं, इसलिये उनके सामने घूंघट में ही रहती हैं. उनकी जरूरत का हर सामान उन्हें मुहैया कराती हैं. गौरव भी उनके दादाजी का लाड़ला है.
इस बार दादाजी महीने भर के लिये अपने बेटे के पास रहने आये थे. गांव में उनका मन नहीं लगता था, क्योंकि उनकी पत्नी का देहांत 2 वर्ष पूर्व हो चुका था.
दादाजी आये और गौरव के पापा को 15 दिन के लिये शहर से बाहर जाना पड़ा. लेकिन दादाजी के कारण गौरव के पापा को कोई चिंता नहीं थी क्योंकि उनके घर पर आने से उन्हें घर की ज्यादा चिंता नहीं रहने वाली थी.
लेकिन दादाजी दो दिन में बोर होने लगे क्योंकि गौरव दिन में कॉलेज चला जाता और मम्मी घर पर काम करती रहती थीं. दिन भर दादा जी को अकेले रहना पड़ता था. गौरव की मम्मी दादाजी की
परेशानी समझ गईं. इसलिये वो दिन में टाइम निकालकर दादाजी के पास पहुंच गईं.
अब यहाँ से मैं प्रीति आंटी को आंटी न लिख कर एक साधारण संबोधन के माध्यम से कहानी में उनका रोल लिख रहा हूँ.
“अरे प्रीति बेटी, आओ..” दादाजी ने कहा.
प्रीति बोली- मैंने सोचा आप अकेले बोर हो रहे होंगे. गौरव भी घर पर नहीं है. इसलिये आपके पास चली आई.
प्रीति ऐसे तो मीठानंद से लाज के कारण बात नहीं करती थी. लेकिन वो अपने को अकेला न समझे.. इसलिये उनके सामने घूंघट में ही बोल रही थी.
“हां बहू.. मुझे थोड़ा अकेलापन तो लगता है, पर तुम सबको खुश देखकर मैं बहुत खुश होता हूँ. बस तुम सभी खुश रहो.. यही चाहता हूँ.”
प्रीति- मैं हूँ न बाऊजी. फिर आप खुद को अकेला क्यों समझते हैं. मैं आपसे दिन में बातें करूंगी. शाम को गौरव है. फिर उसके पापा भी जल्दी ही आ जायेंगे.
दादाजी- वह तो ठीक है प्रीति. पर तुम हमेशा घूंघट में रहती हो.. मेरी बहू हो. इसलिये तुमसे बात करने में थोड़ी झिझक हाती है. फिर तुम्हें भी तो परेशानी होती है.
प्रीति- आप भी कैसी बातें करते हैं बाऊजी. यदि आपको मेरे घूंघट से परेशानी है तो लीजिए मैं घूंघट हटा देती हूँ.
यह कहकर प्रीति ने अपना घूंघट हटा दिया. घूंघट हटते ही उसका गोरा और प्यारा सा मुखड़ा दादाजी को दिखने लगा. मीठानंद ने आज बहुत अरसे बाद अपनी बहू का चेहरा देखा था. वह उनकी पत्नी से भी ज्यादा सुंदर थी. उन्हें अपनी पत्नी की याद आ गई.
प्रीति- कहां खो गए बाऊजी?
प्रीति ने दादाजी का जैसे नींद से जगाया.
दादाजी- कहीं नहीं बहू … तुम्हें देखकर तुम्हारी दादी की याद आ गई. वह भी तुम्हारी तरह बहुत सुंदर थी. जी करता था कि बस उसे देखता रहूँ.
प्रीति ने मुस्कुराते हुए कहा- अच्छा.. दादीजी इतनी सुंदर थीं. तो फिर आप मुझे दादीजी समझकर बात करिए. शायद इससे आपको मुझसे बात करने में परेशानी नहीं होगी.
मीठानंद हंसने लगे- वाह बहू.. खूब कही तुमने.. तुमसे बात करके मेरा मन प्रसन्न हो गया. तुम तो रोते हुए को भी हंसा सकती हो. अब मुझे अकेलापन महसूस नहीं होगा क्योंकि अब मेरे साथ मेरी बहू भी है और पत्नी भी है.
दोनों को एक साथ हंसी आ गई. फिर बहुत सारी बातें करने के बाद प्रीति जाने के लिए उठी, तो उसका पैर टेबल से टकराया और वह गिर पड़ी, जिससे उसके पैर में पता नहीं कैसे मोच आ गई और उससे उठा भी नहीं गया. दादाजी ने प्रीति को सहारा देकर उठाया. लेकिन फिर भी उससे चलते नहीं बन रहा था. आखिर मीठानंद ने प्रीति को अपनी गोद में उठाया और उसके कमरे में ले गए.
प्रीति को मीठानंद के जिस्म की गर्मी आने लगी. उनके बदन की खुश्बू उसके दिलो दिमाग पर छाने लगी.
मीठानंद भी अपनी बहू को अपनी गोद में लेकर ऐसा अनुभव कर रहे थे मानो उनकी गोद में उनकी सेक्सी प्रेमिका हो. मीठानंद के हाथ कांप रहे थे. जैसे-तैसे उन्होंने प्रीति को उसके कमरे में छोड़ा. फिर अपने कमरे में आकर लम्बी सासें भरने लगे.
शाम को गौरव आया. वह अपने दादाजी को कॉलोनी के पार्क में घुमाकर लाया.
रात को सभी ने खाना खाया और अपने अपने कमरे में चले गए. रात के लगभग 11:00 बजे रहे थे, पर प्रीति को आज नींद नहीं आ रही थी. उसे अपने पति राजेश की याद आ रही थी. उसे महसूस हो रहा था कि जिस तरह वह अपने पति को याद कर रही है, उसी तरह मीठानंद भी अपनी पत्नी को बहुत याद करते होंगे.
प्रीति ने अपने कपड़े उतारे और हरे रंग का गाउन पहन लिया. गाउन के नीचे सिर्फ काले रंग की ब्रा और काली ही पैंटी पहन रखी थी. उसे नींद नहीं आ रही थी, इसलिये वह हॉल में आ गई.
उसने देखा कि दादाजी के कमरे की लाइट जल रही है. प्रीति ने सोचा कि क्यों न दादाजी से कुछ बातें करूं ताकि उसका मन हल्का हो जाए और जल्दी से नींद आ जाये. यह सोचकर वह मीठानंद के कमरे की तरफ चली गई. प्रीति ने दरवाजा खटखटाया.
मीठानंद ने दरवाजा खोला तो प्रीति को देखकर चौंक गए. मीठानंद केवल अपने कच्छे में ही थे. उनका भरा पूरा बदन देखकर प्रीति दंग रह गई. उनकी चौड़ी छाती और बालों से भरा सीना उसे अच्छा लगा. साथ ही उनके चेहरे पर रौबदार मूंछें खूब जम रही थीं.
मीठानंद भी प्रीति को देखते ही रह गए. प्रीति का सुंदर सा चेहरा, उसके बिखरे बाल और गदराया सा बदन. मीठानंद ने आज पहली बार अपनी बहू को इतने करीब से देखा तो देखते ही रह गए. अजीब सा नशा दोनों की आंखों में छा गया.
प्रीति कहां तो उनसे बातें करने आई थी और उनके मजबूत शरीर को देखकर उनकी दीवानी हो गई. उसकी आँखों में वासना का खुमार भरने लगा जोकि मीठानंद को साफ़ नजर आने लगा. मीठानंद भी आज अपने बहू की खूबसूरती के आगे अपने आपको काबू में नहीं रख पा रहे थे. प्रीति कुछ बोल ही नहीं पाई तो मीठानंद की जबान भी जैसे चिपक गई हो.
तभी मीठानंद ने न जाने क्यों अपनी बांहें पसार दीं.. उधर प्रीति को भी कुछ समझ में नहीं आया और वह मीठानंद की बांहों में जाकर उनसे चिपक गई. मीठानंद ने भी प्रीति को अपनी बांहों में भर लिया. उनका एक हाथ प्रीति के बालों में तो दूसरा हाथ उसकी पीठ पर घूम रहा था. पांच मिनट तक दोनों एक दूसरे के साथ ही चिपके रहे. उनके जिस्म की गर्मी एक दूसरे के बदन में फैल रही थी.
प्रीति ने अपना सिर हिलाया. मीठानंद ने प्रीति के बालों को पकड़ा और प्रीति के नर्म और गर्म रसीले होंठों को अपने होंठों के बीच दबा लिया. प्रीति भी मीठानंद के होंठों को चूसने लगी. दोनों एक दूसरे को इस तरह चूस रहे थे, जैसे बरसों से प्यासे हों. प्रीति ने अपनी जीभ मीठानंद के मुँह में डाल दी, जिसे मीठानंद मजे लेकर चूसने लगे. मीठानंद ने अपनी जीभ प्रीति के मुँह में डाल दी. दोनों ने एक दूसरे को बहुत देर तक चूसा और दोनों ने एक दूसरे के होंठों को जी भरकर चूसा. तभी प्रीति ने अपना गाउन की डोरी को ढीला किया और उसे अपनी बांहों से ढीला करते हुए नीचे गिरा दिया.
अब प्रीति केवल ब्रा और पैंटी में ही अपने ससुर के सामने खड़ी थी. प्रीति ने दादाजी को बिस्तर पर लेटाया और उनके ऊपर सवार हो गई. प्रीति ने मीठानंद के माथे पर, गालों पर और फिर होंठों पर चुम्बन जड़ दिये. वह उनके गालों और गर्दन पर अपने भीगे होंठ फिराने लगी. प्रीति ने अपने सिर को नीचे किया और मीठानंद के छाती के एक दाने को अपने मुँह में भर लिया. मीठानंद सिसक उठे. प्रीति ने अपने होंठ मीठानंद के बालों से भरी छाती पर फिराई और नाभि को चूमने लगी.
प्रीति ने अपने एक हाथ से मीठानंद के कच्छे का नाड़ा खोला और पूरा नंगा कर दिया. उनका मोटा और लंबा लौड़ा प्रीति के हाथ में आ गया. प्रीति उसे सहलाने लगी. सहलाते सहलाते ही प्रीति ने उसे अपने मुँह में भर लिया. मीठानंद बिन पानी की मछली के समान तड़पने लगे. उनके होंठों से सिसकारियां निकलने लगीं.
फिर तो 5 मिनट तक प्रीति उनके लौड़े को अपने रसीले होंठों से चोदती रही. मीठानंद ने प्रीति के मुँह में ही सारा माल उड़ेल दिया. प्रीति ने सारा रस पी लिया और मीठानंद के अंडुए और झांटों पर जीभ फिराने लगी. प्रीति ने अपना काम कर दिया था. वह मीठानंद के बगल में लेट गई.
“प्रीति बेटी, तुमने तो सचमुच मुझे वो आनन्द दिया है, जो मेरी पत्नी भी नहीं दे सकी. उसने तो कभी सेक्स में पहल ही नहीं की थी और तुमने तो मेरे निप्पल को चूसा ही, साथ ही मेरे लौड़े को मुँह में लेकर सारा वीर्य भी चाट गई. तुम जैसी काम की देवी को अपने आगोश में पाकर मेरा जीवन धन्य हो गया है.”
इस तरह मीठानंद ने अपनी बात कही.
प्रीति ने जवाब दिया- आपका खुशी देखकर मैं भी खुश हूँ बाउजी. पर पूरी खुशी तब होगी जब आप मुझे चोदकर पूरा मजा दोगे.
मीठानंद- तुम मुझे बाउजी मत बुलाओ प्रीति.. तुम मुझे सिर्फ मीठानंद ही कहो. तुमसे शारीरिक संबंध बनाकर मैं बाउजी कहने लायक नहीं रह गया हूँ.
प्रीति ने बेशरमी के साथ ही तड़पते हुए कहा- ठीक है मेरे राजा मीठानंद.. पर अब तुम देर मत करो. जल्दी से मेरी चूत की तड़प को बुझा दो. आओ मेरे मीठे मीठानंद मेरे जिस्म की प्यास को बुझा दो.
यह सुनकर मीठानंद प्रीति के ऊपर चढ़ गए. जी भरकर प्रीति के होंठों को चूसा. उसकी ब्रा खोली और मम्मों को अपने मुँह में भर लिया. मम्मे चूसते चूसते मीठानंद दांतों से हल्का हल्का दबा भी रहे थे. प्रीति सिसकने के साथ ही आहें भी भर रही थी. मीठानंद अपने होंठों को प्रीति के नंगे बदन पर तेजी से फिराने लगे. प्रीति को नाभि पर आते ही जोर जोर से चूसने लगे. प्रीति की सिसकारियां बढ़ गईं. मीठानंद ने प्रीति की पैंटी को एक झटके में खोल दिया और उसकी मस्त और चिकनी बिना बालों की चूत पर अपने होंठों को रख दिया. मीठानंद ने तब तक चूत को चूसना जारी रखा, जब तक चूत में से पानी नहीं निकल गया.
मीठानंद का लौड़ा फिर अपने पूरे शवाब पर था. प्रीति ने अपनी टांगें फैला दीं, जिससे उसकी गीली चूत और फैल गई. मीठानंद अब समझ गए कि प्रीति की चूत में खुजली बढ़ गई है, जिसे उनका लौड़ा ही बुझा सकता है. मीठानंद फिर से प्रीति के ऊपर आ गए. अपना लौड़ा प्रीति की चूत पर सैट किया और एक ही झटके में पूरा का पूरा लौड़ा प्रीति की चूत में घुसा दिया. प्रीति की हल्की सी चीख निकली.
अब मीठानंद धीमी रफ्तार में चोदते हुए नीचे झुके और प्रीति के मम्मों को चूसने लगे. प्रीति अपने हाथ मीठानंद के नंगे बदन पर घुमाने लगी. मीठानंद ने प्रीति के रसीले लाल होंठों के बीच जीभ डाल दी. प्रीति जीभ को चूसने लगी. कुछ देर इसी तरह चुदाई चलती रही. मीठानंद धीरे से उठे और प्रीति की कमर को अपने हाथों से पकड़कर धक्कों की रफ़्तार तेज कर दी. प्रीति का पूरा बदन हिलने लगा. कमरे में भी फच फच की आवाज आने लगी. प्रीति दो बार झड़ चुकी थी. कुछ देर तक मीठानंद प्रीति को चोदते रहे और तेजी से एक दो धक्के मारकर अपना सारा माल प्रीति की चूत में डाल दिया. गर्म रस की फुहारों से प्रीति की चूत गीली हो गई. मीठानंद ठंडे पड़ गए और प्रीति के ऊपर लेट गये. प्रीति ने खुशी से उनका चेहरा चूम लिया.
कुछ देर दोनों ऐसे ही लेटे रहे. मीठानंद उठते हुए बोले- क्यों प्रीति, मजा आया या नहीं इस बूढ़े से चुदाई करवा कर?
प्रीति बोली- मीठानंद, आपने तो कमाल की चुदाई की है. मेरा अंग अंग खुश हो गया है. जी करता है कि बस आपसे चुदवाती ही रहूं. पर रात काफी हो गई है. अब मैं चलती हूँ. कल मिलती हूँ आपसे.
यह कहकर प्रीति ने प्यारा सा चुंबन मीठानंद को दिया और अपने कमरे में चली गई.