विधवा आंटी का प्यार • Kamukta Sex Stories

विधवा आंटी का प्यार

नमस्कार दोस्तो, मैं रवि (बदला हुआ नाम) उत्तराखंड के छोटे से जिले का रहने वाला हूं, मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ अपने जीवन की एक सच्ची घटना आपसे शेयर करना चाहता हूं यह मेरी पहली कहानी है इसलिए जो भी त्रुटि हो उसके लिए माफ कर देना मुझे उम्मीद है कि यह कहानी आपको पसंद आएगी।

मेरी उम्र 22 साल है मैं प्राइवेट नौकरी करता हूँ मेरे लन्ड का साइज सामान्य है.

अब आपको ज्यादा बोर ना करते हुए सीधे कहानी पर आता हूँ. मेरे गाँव में एक विधवा आंटी रहती है जिनका नाम मुन्नी (बदला हुआ नाम) है, उनका एक बेटा भी है जो अभी छोटा है. आंटी की उम्र लगभग 35 के आसपास होगी. मुझे शुरू से ही अपने से बड़ी उम्र की औरतें पसंद हैं तो मैं आंटी को पसंद करता था. आंटी एक मस्त बदन की मालकिन है गांव के सभी लड़के उन्हें पटाने के असफल प्रयास कर चुके थे, अब मेरी बारी थी.

मैंने अक्ल से काम लिया, मैं रोज आंटी के पास जाता, उनसे बातें करता, उनको काम में मदद करता, उनके बेटे के साथ खेलता. धीरे धीरे हम काफी घुलमिल गए.

एक दिन मैं जब मार्किट से आंटी का कुछ सामान लेकर उनके घर आ रहा था तो अंदर एकदम से नजर आंटी पर चली गयी, वो उस समय मूत रही थी, शायद उन्हें जोर की लगी थी इसलिए टाइलेट के बाहर ही मूत रही थी.
तभी उन्होंने मुझे आते देख लिया और जल्दी से पजामा ऊपर करने लगी. जल्दबाजी में उनसे पजामा नीचे गिर गया. अब मेरे सामने उनकी चूत थी जो बिल्कुल बाल रहित थी. उन्होंने फिर से पजामा ऊपर किया और कमरे में भाग गई.
फिर मैं सामान रकः कर अपने घर आ गया. उस दिन मैं उनके घर नहीं गया.

दूसरे दिन उनका बेटा मेरे पास आया और आंटी के जन्मदिन का निमंत्रण देकर चला गया, मैं शाम को जल्दी ही आंटी के घर चला गया और जन्मदिन के काम में उनकी मदद करने लगा.

वो आज मुझ से शरमा रही थी तो मैंने मजाक में पूछा- आंटी, आज आप मुझसे क्यों शरमा रही हो?
आंटी- जैसे तुम्हें कुछ पता ही नहीं?
मैं- क्या आंटी?
आंटी- कल घूर घूर के क्या देख रहे थे?
मैं- आपको!
आंटी- मुझे या मेरी…?
मैं- मेरी क्या आंटी?
आंटी- चलो बस बस… ज्यादा मजे मत लो, मेरी मदद करो काम में।

फिर हम रात को केक काटने की तैयारी कर रहे थे तो मैंने आंटी से कहा कि मेहमान कहाँ हैं?
तो उन्होंने कहा- इस बर्थडे पार्टी में सिर्फ़ हम तीन ही हैं.
मैंने इसका कारण पूछा तो आंटी ने कहा- मैं यह पार्टी सिर्फ तुम्हारे साथ मनाना चाहती थी इसलिए!

मैं मन ही मन खुश हो रहा था मेरा जादू चल गया था फिर केक काटा गया और सभी ने खाया फिर हमने साथ में खाना खाया.

फिर उनका बेटा सो गया और हम बैठ कर बातें करने लगे, आंटी थोड़ी उदास लग रही थी।
मैं- आप उदास क्यों हो?
आंटी- आज उनकी याद आ रही है… अगर वो होते तो मेरा बेटा और मैं अकेले ना होते!
यह कहते ही वो मेरे कन्धे पर सर रखकर रोने लगी.

मैंने उन्हें अपनी बांहों में भर लिया और कहा- आप और आपका बेटा अकेले नहीं है मैं आपके बेटे को बाप का प्यार दूंगा।
फिर मैंने उनका चेहरा अपनी तरफ किया और चूम लिया. मैं उनके होटों को चूसता रहा. मैं उनकी जीभ को भी चूस रहा था और आंटी आँखें बंद कर मज़ा ले रही थी. फिर कुछ देर बाद वो भी रिस्पॉन्स देने लगी.

अब मैंने उनका साड़ी का पल्लू नीचे गिराया और चूचियाँ दबाना शुरू कर दिया, आंटी मेरा लन्ड सहलाने लगी. फिर मैंने उनका ब्लाउज और ब्रा भी उतार दिये और उनके खरबूजों का रस पीने लगा. आँटी की चूचियाँ काफी बड़ी बड़ी थी.

आँटी मेरे कपड़े उतारने लगी, उन्होंने बड़े प्यार से मुझे नंगा किया और ललचाई नजर से मेरे जिस्म को निहारने लगी. फिर मैंने उनकी साड़ी, पेटीकोट और कच्छी सब उतार दिया, अब वो मेरे सामने पूरी नंगी खड़ी थी, वो शरमा कर अपनी चूत अपने हाथों से छिपाने लगी. मैंने पास जाकर उनके हाथों को हटाते हुए कहा- आखिर क्या छुपा रही है मेरी रानी? वाह इतनी प्यारी चीज कोई छुपाता है भला?

और फिर मैंने आंटी की चूत पर होंट लगा कर चूत का रस पीना शुरू कर दिया, वो सिसकारियां लेने लगी ‘आह हहह… ओहह… हहह… मार डाला रे! अब पेल दो जान प्लीज़!
फिर मैंने अपना लन्ड उसके हाथों में देते हुए कहा- जरा इसे भी अपने होंटों का स्वाद चखा दो!
पर आंटी ने मना कर दिया- मुझे चूसने में शर्म आती है!
पर मैंने जबरदस्ती उनके मुंह में लन्ड डाल दिया, अब वो धीरे धीरे मेरा लन्ड चूसने लगी, मैं आनन्द के सागर में गोते लगा रहा था.

और तभी वो उठी और कहने लगी- अब मत तरसा… अब बर्दाश्त नहीं होता!
मैंने अपना लन्ड उनकी चूत में सेट किया और एक जोरदार झटका मारा, लन्ड सीधे उनकी चूत में घुस गया, उनकी आंखों से आँसू बहने लगे।
“सॉरी आंटी… आपको दर्द हुआ क्या?”
“नहीं… बहुत साल बाद ले रही हूँ तो इसलिए! और अब मुझे आंटी नहीं, मुन्नी बोल!”

मैं बोला- ओ के मैडम, जैसा आपका हुक्म!
मैं अब तेजी से आंटी की चूत पेलता गया, वो सिसकारियां लेती गयी- आहह उम्म्ह… अहह… हय… याह… ओह हहह!

फिर कुछ देर बाद उन्होंने मुझे कस कर पकड़ लिया और झर गयी, वो अब मेरे होंटों को चूस रही थी और मेरे बदन को सहला रही थी,
फिर मैंने कहा- मुन्नी, थोड़ा गांड का स्वाद भी चखाओ ना!
आंटी डर कर बोली- मैंने कभी गांड नहीं मराई, मुझे डर लगता है!
“ओहो मुन्नी यार… तुम क्यों इतना डरती हो? मैं हूँ ना!”

अब मैंने उसे घोड़ी बनाया और लन्ड गांड में सेट कर एक हल्का झटका दिया पर लन्ड अटक गया मगर मैंने दोबारा लण्ड गांड पर सेट किया इस बार मैंने जोर से पेला तो लन्ड गांड फ़ारता हुआ अंदर चला गया.
मुन्नी जोर से चीखी- आआ आआह हहह मर गयी!
मैं थोड़ा रुका और मुन्नी के होंठ चूमने लगा.

फिर मुन्नी जब नार्मल हुई तब फिर चोदना शुरु किया, मैं जोर जोर से आंटी की गांड मारने लगा, मुझे बड़ा मजा आ रहा था. फिर बीस मिनट और चोदने के बाद में मुन्नी की गांड में ही झर गया.
मुन्नी अब बहुत खुश थी, आज सालों बाद उसे पति का प्यार मिला था.

अब हमें जब भी अवसर मिलता है, हम जी भर के चुदाई करते हैं।

आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी? कृपया मेल द्वारा बताइएगा।